मेरी जिजीविषा

किसी शब्द के अर्थ को जानना और वास्तविकता में उसे समझना - इन दोनों में ठीक वैसा ही अंतर हैं जैसे जीवन जीना और जीने की इच्छा से जीना। 

जीवन एक अनवरत प्रक्रिया हैं - इच्छा, अनिच्छा से परें; एक ऐसा सफर जिसमे सफलता और संघर्ष से अलंकृत आपकी और मेरी कहानी हैं। एक अनसुलझी पहेली जिसे सुलझाते-समझते मनुष्य अपने अंतिम पड़ाव तक पहुँच जाता है लेकिन जीवन जीने की कला को नहीं भेद पाता।  


जीवन जीते तो सब हैं किन्तु जीने की इच्छा से नहीं, प्रतिबद्धता से। ऐसे में जिजीविषा कब और कैसे जागृत होती है ? इसका सार इसके अर्थ से भी गहरा है। जीने की इच्छा मनुष्य के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करती है। फिर यह सवाल करना स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मनुष्य में क्यों और कहाँ से आती है ?


इसके उत्तर को मेरे अंतर ने बहुत ढूंढने की कोशिश की। जब यह सवाल खुद से किया तो कलम बढ़ने का नाम ही ना ले । मेरी सुई समय के उस कालचक्र पर जाकर ठहर गयी जहाँ मृत्यु से पुनः लड़कर मैंने एक नया जीवन पाया था - जीने की इच्छा से। क्या यह इच्छा इस बात का संकेत नहीं की हम प्राणी कभी हार ना मानने वालों में से है।  


जीने की इच्छा स्वयं के अंदर छिपी असीम आकांक्षाओं को पंख देने हेतु एक प्रबल स्वरुप ले लेती है। मेरी जिजीविषा नारी के नेतृत्व से है। उनके अधिकार, सहनशीलता, सम्मान और संघर्ष की कहानी लिखने से है। उनकी हर मनःस्थिति को दर्शाने से है जो समाज के संकीर्णता से ग्रसित होकर खुद को कैद पाती है।  


नारी तुम स्वतन्त्र हो 

परतंत्रता नर की चाल 

इरादों से मज़बूत बनो 

हर राह बनेगी तुम्हारी चाह


मेरी जिजीविषा स्वतन्त्र विचार को प्रस्तुत करने से हैं - ऐसा नहीं है कि जो मैं लिखूंगी वो कभी लिखा ना गया हो, पढ़ा ना गया हो किन्तु अपनी भाषा में ज़रूर उस जानकारी को और प्रगाढ़ करना चाहूंगी ताकि मेरे शब्द ग्रामीण इलाकों के हर गली-मोहल्ले तक पहुँच सके और उम्मीद करती हूँ कि आप उसपर एक बार ज़रूर सोचे और गौर फरमायें। मेरे शब्द स्त्री का प्रतिनिधित्व ज़रूर करेंगे किन्तु इसका उद्देश्य पुरुष वर्ग की चेतना में जागरुकता लाने से है ना की गिराने से हैं। 


एक छोटी सी शुरुआत हैं ताकि अपनी भाषा हिंदी के ज़रिए आप तक जानकारी पहुंचाने का माध्यम बन सकूँ। हिंदी भाषा के प्रति लोगों की घटती दिलचस्पी एक आम बात होती जा रही हैं। इस सवाल का क्यों हम सबको पता हैं। हमारी भाषा से जुड़ती पहचान हमे गंवारा नहीं क्यूंकि कोई हमे गंवार ना समझ ले। पढ़े-लिखें होने का मतलब अंग्रेजी तो आनी चाहिए। ज्ञान का प्रकाश सर्वप्रथम अपने संस्कृति के होने से और उसकी स्वीकृति से बनती हैं। इसी कारण मेरे अंतःकरण से निकलते स्वर को यहाँ शब्दों में पिरोकर मैं मेरी, आपकी, हम सबकी भाषा में बात करुँगी। ताकि वो बात जो विकास और परिवर्तन, नारी के सशक्तिकरण के लिए लिखी जाती हैं, वो सिर्फ अंग्रेजी भाषा तक ही सीमित ना रहें।  


धरातल की सच्चाई को बदलना हैं तो उस धरती की भाषा में ही बातचीत उचित हैं। जिस ढांचें ने अंग्रेजी जाना ही नहीं वहाँ अंग्रेजी भाषा प्रयोग करके आप एक शिक्षित वर्ग को और शिक्षित कर रहे हैं किन्तु जिन्हे यह समझने की सबसे ज़्यादा ज़रुरत हैं वे आज भी आपकी भाषा को समझने से रहे और आप उनकी। इसी कारण मेरी जिजीविषा मेरी भाषा से भी हैं। अभी तक के अर्जित ज्ञान को अपनी भाषा के रूप में प्रस्तुत कर शिक्षा से जुड़े विभाजन को कम करने से हैं। 


इसी प्रयास में 'मेरी जिजीविषा' एक आरम्भ है ताकि हम सब सहृदयता से एक दूसरे की मूल भावनाओं को समझे और सबके अधिकारों को स्वीकार कर आदर भाव रखें।


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