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Showing posts from October, 2021

'एक नारी की व्यथा'

  क्या नारी कभी स्वच्छंद थी ? क्या उसके फैसले कभी उसके अपने थे ? और क्यों कभी उसने उड़ना चाहा तो समाज़ ने उसका पक्ष देखने से इंकार कर दिया?   इस व्यथित मन से लिखने को मजबूर हो जाती हूँ।  बिहार प्रांत के सासाराम से हूँ और यहाँ के परिवेश की एक मूक आवाज़ हूँ। पिताजी का अपनी मिटटी से लगाव ही हैं जो उनके साथ हमे भी अपने जड़ों से जोड़ें रखा हैं। यही वजह हैं कि शहर और गाँव की जीवनचर्या से वाकिफ़ रखती हूँ।  वाक्यां बीतें कुछ साल पहले का हैं। माँ-पापा गीताघाट बाबा के यज्ञ में जाने के लिए तैयार हो रहे थे।  मैं हर बार की तरह बालकनी में दौड़ के आयी, उन्हें स्र्ख़सत करने - पर दृश्य ही अलग था. एक आदमी अपनी पत्नी की कलाई पकड़े उसे घसीटे लिए जा रहा था और वो चार-पांच वर्षीय अपने बालक को गोद में लिए उसका विरोध कर रही थी। आस-पास लोग जुट रहे थे पर कोई उनका प्रतिरोध नहीं कर रहा था। लड़की बार-बार इस कोशिश में थी की वो उसका हाथ छोड़ दे, किन्तु वो उसे घर ले जाने के लिए आतुर था।  ये पहली बार था जब महिलाओं के समान रूप से जीने के अधिकार की अवहेलना का प्रत्यक्ष रूप नेत्र के सामने था। जब उसक...

मेरी जिजीविषा

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किसी शब्द के अर्थ को जानना और वास्तविकता में उसे समझना - इन दोनों में ठीक वैसा ही अंतर हैं जैसे जीवन जीना और जीने की इच्छा से जीना।  जीवन एक अनवरत प्रक्रिया हैं - इच्छा, अनिच्छा से परें; एक ऐसा सफर जिसमे सफलता और संघर्ष से अलंकृत आपकी और मेरी कहानी हैं। एक अनसुलझी पहेली जिसे सुलझाते-समझते मनुष्य अपने अंतिम पड़ाव तक पहुँच जाता है लेकिन जीवन जीने की कला को नहीं भेद पाता।   जीवन जीते तो सब हैं किन्तु जीने की इच्छा से नहीं, प्रतिबद्धता से। ऐसे में जिजीविषा कब और कैसे जागृत होती है ? इसका सार इसके अर्थ से भी गहरा है। जीने की इच्छा मनुष्य के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करती है। फिर यह सवाल करना स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मनुष्य में क्यों और कहाँ से आती है ? इसके उत्तर को मेरे अंतर ने बहुत ढूंढने की कोशिश की। जब यह सवाल खुद से किया तो कलम बढ़ने का नाम ही ना ले । मेरी सुई समय के उस कालचक्र पर जाकर ठहर गयी जहाँ मृत्यु से पुनः लड़कर मैंने एक नया जीवन पाया था - जीने की इच्छा से। क्या यह इच्छा इस बात का संकेत नहीं की हम प्राणी कभी हार ना मानने वालों में से है।   जीने की...